पाप का बीज

जब से आदम और हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा को उल्लंघन किया, तब से सभी लोग पाप के बीज के साथ जन्म लिए हैं। मुझे में है, आप में है, हम सब में है। “इसलिए कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है” (रोमियों ३:२३)।

एक सन्तान होने के नाते, मैं खुश हूँ। मैं आजाद हूँ। यीशु का लहू मेरे पापों को ढक देता है। जैसे मैं बढ़ते जाता हूँ, मैं और उतनी आजादी महसूस नहीं करता। यह बीज मुझमें पापमय विचार और कार्य को उत्पन्न कर रहा है। मुझे बेचैन होने लगी है। कभी-कभी मैं हैरान व डर जाता हूँ।

अब क्या?

मैं इस बीज को दुर करने में असमर्थ हूँ। यह घिनौना हैं। यह तेजी से बढ़ता है। मैं शैतान का नियंत्रण के अधीन में हूँ। शैतान ही इस घिनौना बीज का पिता है। अब वह मेरा मालिक है। मैं क्या करुँ, मैं क्या कर सकता हूँ? मैं विदीर्ण हो चुका हूँ। मेरा एक हिस्सा को यह पसन्द है और एक हिस्सा को नहीं। मैं अपने आप को और अपने इच्छाअों को नियंत्रण नहीं कर सकता। शैतान कहता है कि मैं आजाद हूँ। शैतान मुझे रोमांचक जीवन के विषय में बताता है जो बिल्कुल मेरे सामने है। वह कहता है चिंता मत करो; मजा करो। कभी-कभी मैं उस-पर विश्वास करता हूँ, पर देर रात को जब मैं अकेले होता हूँ, मैं अच्छे से समझता हूँ। जब तक मैं न बदल जाऊ, मैं डरता हूँ कि मैं विनाश की ओर बढ़ता जा रहा हूँ।

यीशु मुझे बुला रहा है। मैं उनसे प्रार्थना करता हूँ। दुसरे लोग मेरे लिए प्रार्थना करते हैं। मैं अपने पापों को स्वीकार करता हूँ जब तक मैं थक न जाता। मैं हर सम्भव प्रयास करता हूँ। जितना मैं सोच सकता हूँ, पर मैं अपने आप को बदल नहीं सकता। मेरा हृदय पापपूर्ण है, मैं नरक के रास्ते में हूँ।

मैं अपने डोरी के सिरे पर हूँ

मैं अपने डोरी के सिरे पर हूँ। झुलते हुए, लहराते हुए, लटकते हुए प्रार्थना करते हुए- मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं असहाय हूँ। मुझे क्षमा चाहिए। मैं परमेश्वर से मेरे पापों की क्षमा मांगता हूँ। मेरे सम्पूर्ण बेबसी में, मैं दौड़कर जाता हूँ और प्रेमी उद्धारकर्ता के बाहों में आश्रय लेता हूँ। “यीशु, मैं मेरा पापमय हृदय, मेरे सुधरने का प्रयास, मेरा अतित, मेरा भविष्य आपको देता हूँ।” वह तुरतं ही वहाँ होता है। क्या ही अच्छा और स्नेहमय उपस्थिति है। जब वह मेरे पापपूर्ण हृदय को धोकर साफ करता है, मैं उनके कोमल किले से चोटिल हाथ को अनुभव कर सकता हूँ। मैनें क्षमा पायी है। अब कोई डर या अन्धेरा नहीं है। जब मैं उनका सन्तान था उष्ण धूप मुझ पर चमकती थी जैसे अब चमकती है। अब मैं परमेश्वर का एक सूखी सन्तान हूँ। शैतान का मुझपर कोई नियंत्रण नहीं है। दयालू यीशु जो मेरे पास रहता है अब वह मेरे जीवन को नियंत्रण करता है। मैं उद्धार के आनन्द में प्रवेश करता हूँ। कितना सुन्दर और शांतिपूर्ण सफर है। “यदि हम अपने पापों को मान ले, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (१ यूहन्ना १:९)।

लेकिन यह क्या?

सम्पूर्ण विषय-वस्तु – पाप का बीज

ओह, मैं मनहूस! मैनें फिर से पाप किया। मुझमें अब भी पाप का बीज है। लेकिन एक उपाय है। यीशु का धीमी आवाज मुझे बताता है कि कैसे पाप का सामना करना चाहिए। जब मैं पाप के जाल में फंसा हुआ था तब शैतान मुझे जो बताता था मुझे याद है। उसने मुझसे कहा कि मैं हारा हुआ हूँ। मैं ऐसी चीजें कैसे कर सकता हूँ? अब मेरे लिए कोई आशा नहीं है। मैनें फिर पाप किया। अब मैं क्या कर सकता हूँ? मैं सुधरने का प्रयास कर सकता हूँ, पर वह कामयाब नहीं होता। मैं बहाना बना सकता हूँ - कि यह मेरे माता-पिता, मेरा काम, मेरा स्वभाव या अन्य व्यक्ति के कारण हुआ। यह विचार शैतान को खुश करता है। वह मुझे सुधरने से रोकना चाहता है। यीशु मेरा एकमात्र आशा है। वह कहता है, “आओ”!

विश्वास में चलना

इसलिए मैं उनके पास आता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि मैनें पाप किया है। मैं कोई बहाना नहीं बनाता। मैं जैसा हूँ स्वंय को उससे अच्छा दिखानें का प्रयास नहीं करता। मैं उनको बताता हूँ कि मैनें पाप किया, मैं उनसे क्षमा की याचना करता हूँ। मैं उनके सम्मुख असहाय होकर आता हूँ। मैं स्वंय को शुद्ध नहीं कर सकता। वह प्रसन्नतापूर्वक मुझे क्षमा करता और शुद्ध करता है। विश्वास के द्वारा, मैं जानता हूँ कि मैं परमेश्वर का सन्तान हूँ। मैं जानता हूँ कि उनका वादा सच है। मेरे हृदय में, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैनें क्षमा पाया है। यहीं है विश्वास में चलना। जब मैं यह महसूस करता हूँ, मैं कृतज्ञ हृदय से परमेश्वर का प्रशंसा करता हूँ। मैं असहाय था। उसने मुझे छुड़ाया। परमेश्वर की महिमा हो!

मुझे याद रखना चाहिए कि मेरा पाप का मूल्य चुकाने के लिए यीशु क्रूस पर मरा। जब मुझे उसका जरुरत होता है तो वह प्रसन्न होता है। जब मैं यीशु के करीब रहता हूँ, मेरे ऊपर शैतान अपनी क्षमता खो देता है। यीशु वायदा करता है, “मेरा अनुग्रह तेरे लिए बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है” (२ कुरिन्थियों १२:९)। 

पाप का बीज से जयवन्त होने के लिए विश्वास का जीवन मुझे सामर्थ्य देता है। मैं परमेश्वर को उनका अनुग्रह और दया के लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं उनसे प्रार्थना करता और उनका धीमी आवाज को सुनता हूँ। मैं उनका वचन बाइबल पढ़ने के द्वारा सान्त्वना और शिक्षा पाता हूँ। मैं उनका आज्ञाकारी हूँ क्योंकि मैं उनसे प्रेम करता हूँ। जैसे मैं आज्ञाकारी और विश्वासयोग्य हूँ, मसीही जीवन फलदायक और संतोषप्रद है। स्वर्ग मेरा घर होगा।

 

 

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एक मित्र आपके लिय

यीशु आपका मित्र

मेरा एक मित्र हैं। वह सबसे अच्छा मित्र है ऐसा कोई पहले कभी नहीं हुआ। वह बड़ा दयालू है और सच्चा है मैं चाहता हूं कि आप भी उसे जाने। उसका नाम यीशु है। बड़ी अनोखी बात ये है कि वह आपका भी मित्र बनना चाहता है। मैं उसके बारे में आपको बताना चाहता हूं।

हम यह कहानी बाइबल में पढ़ते हैं। बाइबल सच्ची है। यह परमेश्वर का वचन है। एक परमेश्वर है जिन्होंने संसार और संसार के सभी चीजों को बनाया है, वह स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्वर हैं। वह सभी चीजों को साँस और जीवन देते हैं।

सम्पूर्ण विषय-वस्तु – एक मित्र आपके लिय

यीशु परमेश्वर का बेटा है। परमेश्वर ने उसे स्वर्ग से इस पृथ्वी पर भेजा कि वह हमारा अपना उद्धारकर्ता बन जाये। परमेश्वर ने जगत से इतना प्यार किया (अर्थात उसने आपसे और मुझसे प्यार किया) कि उसने अपना एकलौता बेटा यीशु को भेज दिया (हमारे पापों के लिये मरने) ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश ना हो परन्तु अनन्त जीवन पाये (यूहन्ना ३:१६)

यीशु इस पृथ्वी पर एक छोटे नन्हे बच्चे के रूप में आया। पृथ्वी पर उसके पिता और माता, युसूफ और मरियम थे। वह गौशाला में पैदा हुआ तथा चरणी में रखा गया।

यीशु युसूफ और मरियम के साथ बढ़ता गया और उसने माता-पिता की आज्ञा मानी। वह युसूफ को बढ़ई की दूकान में मदद करता था।

जब यीशु बड़ा होकर एक आदमी बन गया, उसने लोगों को अपने स्वर्गीय पिता के विषय में बताया। उसने दिखाया कि परमेश्वर उनसे प्यार करता है। उसने बिमारों को चंगा किया और जो दुखी थे उन्हें शांति दी। वह बच्चों का मित्र था। वह चाहता था कि बच्चे उसके पास आयें। बच्चों के लिये उसके पास समय था। बच्चे यीशु को प्यार करते थे और उसके साथ रहना चाहते थे।

कुछ लोग यीशु को नहीं चाहते थे वे उससे जलते थे और उससे नफरत करते थे। वे इतना अधिक नफरत करते थे कि उसे मार डालना चाहते थे। एक भयानक दिन उन्होंने यीशु को क्रुस पर चढ़ाकर मार डाला। यीशु ने कुछ गलत नहीं किया था। उसे हमारे स्थान पर मरना पड़ा क्योंकि आपने और मैंने गलत किया था।

यीशु की कहानी उसकी मृत्यु के साथ खतम नहीं हुई। परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया। उसके चेलों ने उसे देखा। और एक दिन वह वापस स्वर्ग को चला गया।

आज वह आपको देखता तथा आपकी बात सुनता है। वह आपके विषय में सब कुछ जानता है और आपकी चिंता करता है। बस प्रार्थना करें और उसके पास आ जायें।

अपनी परेशानी के विषय उसे बतायें वह आपकी सहायता करने के लिये तैयार है। आप अपना सर झुका के उससे बात कर सकते हैं कहीं भी और कभी भी।

किसी दिन वह फिर से आने वाला है जिन्होंने विश्वास किया वह उन सबको अपने घर स्वर्ग में ले जायेगा।

 

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पर्मेश्वर का उपहार (आपके लिए)

आदि में पर्मेश्वर, उसके पुत्र यीशु मसीह, और पवित्र आत्मा थे। उन्होंने पृथ्वी और जो कुछ इसमें है, उन सब कि सृष्टि की। अपने प्रेम में, पर्मेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया और उसे एक सुंदर वाटिका में रखा। मनुष्य ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन नहीं किया। यह अनाज्ञाकारिता पाप था और इस पाप ने मनुष्य को पर्मेश्वर से अलग कर दिया। पर्मेश्वर ने उनसे कहा कि अपने पापों कि क्षमा के लिए उन्हें निर्दोष एवम् निष्कलंक छोटे पशुओं का बलिदान देना होगा। इन बलिदानों ने उनके पाप का मूल्य नहीं चुकाया परंतु केवल उस सर्वश्रेष्ठ बलिदान की तरफ इशारा किया जो पर्मेश्वर स्वयं प्रदान करेंगे। एक दिन परमेश्वर अपने पुत्र यीशु को इस पृथ्वी पर भेजेंगे ताकि सभी लोगों के पापों के लिए वह अंतिम और सर्वश्रेष्ठ बलिदान हों।

 

मरियम और स्वर्गदूत

सम्पूर्ण विषय-वस्तु – पर्मेश्वर का उपहार (आपके लिए)

चार हज़ार वर्ष पश्चात्, नासरत नाम के एक शहर में, मरियम नामक एक कुंवारी स्त्री रहती थी। उसकी मंगनी यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी। एक दिन एक स्वर्गदूत ने मरियम को दर्शन दिया और उससे कहा कि वह एक विशेष बालक को जन्म देगी। उसका नाम यीशु रखना होगा। इस बच्चे का कोई सांसारिक पिता नहीं होगा। वह पर्मेश्वर का पुत्र होगा।

 

यीशु का जन्म

स्वर्गदूत से भेंट के पश्चात्, यूसुफ और मरियम ने कर का भुगतान करने के लिए बेथलहम कि ओर एक लंबी यात्रा की। जब वे बेतलेहेम पहुंचे, तो शहर में बड़ी भीड़ थी। सराय में कोई जगह नहीं मिलने के कारण उन्होंने रात एक गौशाले में बिताई। वहां यीशु का जन्म हुआ। मरियम ने बालक यीशु को एक कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा।

 

चरवाहे

उसी रात, शहर के बाहर एक पहाड़ी पर, चरवाहे अपनी भेड़ों कि रखवाली कर रहे थे। प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ, और प्रभु का तेज उनके चालों ओर चमका। स्वर्गदूत ने कहा, "मत डरो। क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनंद का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिये होगा। इस रात एक उद्धारकर्ता जन्मा है। वह प्रभु यीशु मसीह है। तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।" तब एकाएक बहुत से स्वर्गदूतों ने पर्मेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए कहा, "आकाश में परमेश्वर की महिमा, और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है, शांति हो"। जब स्वर्गदूत उनके पास से चले गए, तब चरवाहे अपनी भेड़ों को छोड़ तुरंत बैतलहम को चल दिए। और जैसा स्वर्गदूत ने उनको कहा था उन्होंने बच्चे को ठीक वैसा ही पाया।

 

ज्योतिषी

यीशु के जन्म के पश्चात्, पूर्व देश से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछ्ने लगे, "यहुदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको प्रणाम करने आए हैं।" जब राजा हेरोदेस ने यह सुना, तो वह प्रसन्न नहीं हुआ। तब उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और शास्त्रियों को एक साथ बुलाया। उन्होंने राजा को बताया कि भविष्यवक्ताओं ने कहा था कि एक शासक बैतलहम में पैदा होगा। राजा हेरोदेस ने ज्योतिषियों को इस राजा की खोज के लिए बेतलेहेम भेजा। ज्योतिषी राजा की बात सुनकर यरूशलेम से चले गए, और जो तारा उन्होंने पुर्व में देखा था वह उनके आगे-आगे चला और जहां बालक था, उस जगह के उपर पहुंचकर ठहर गया, उन्होंने उस घर में पहुंचकर बालक यीशु को देखा। उन्होंने मुँह के बल गिरकर बालक को प्रणाम किया, और अपना-अपना थैला खोलकर उसको सोना, और लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ाई। पर्मेश्वर ने ज्योतिषियों को एक स्वप्न में चेतावनी दी कि उन्हें दुष्ट राजा हेरोदेस के पास वापस नहीं जाना चाहिए, इसलिए वे दुसरे मार्ग से अपने घर चले गए।

 

पर्मेश्वर के उपहार का कारण

यीशु परमेश्वर का पुत्र था। वह पाप रहित रहा और अपने सभी कार्यों में सिद्ध था। तीस वर्ष की आयु में, यीशु ने लोगों को पर्मेश्वर, अपने पिता के बारे में सिखाना शुरू किया। उसने कई आश्चर्यकर्म किए जैसे, अंधों को दृष्टि प्रदान कि, कई लोगों को बीमारियों से चंगा किया, और यहां तक कि मरे हुओं को भी जिलाया। इन सब से बढ़कर उसने स्वर्ग में अनन्त जीवन प्राप्त करने का मार्ग बताया। फिर उसने सारे जगत के पापों के बलिदान के लिये अपने प्राणों को दे दिया।

यूहन्ना ३:१६ में बाइबल कहती है, "क्योंकि पर्मेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिय, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट ना हो, परन्तु अनन्त जीवन पाये।" एक सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ बलिदान के रूप में क्रुस पर मरने के लिये यीशु इस संसार में आया। उनकी मृत्यु से, सभी पापों की कीमत चुकाई गई है। अब पाप के लिए बलिदान देने की आवश्यक्ता नहीं है। यह उद्धारकर्ता को भेजने के लिए पर्मेश्वर कि प्रतिग्या की पूर्ति थी।

यद्धपि यीशु दुष्ट मनुष्यों के द्वारा मार डाला गया, परंतु मृत्यु का उस पर कोई बल नहीं था। तीन दिन बाद वह कब्र से विजयी होकर जी उठा। उसके जी उठने के बाद के दिनों तक, यीशु बहुत से लोगों के द्वारा देखा गया। फिर एक दिन, अपने चेलों को आशीष देने के बाद, वह स्वर्ग में चला गया।

जब हम उस पर सम्पूर्ण विश्वास करते हैं और अपने जीवन को यीशु के हाथों में सौंपते हैं, तो उसका लहू हमें सभी पापों से शुद्ध करता है। जब हम उद्धार के इस उपहार को स्वीकार करते हैं, तब हमारा सम्बंध पर्मेश्वर के साथ फिर से जुड़ जाता है। यीशु हमारे व्यक्तिगत प्रभु और उद्धारकर्ता बन जाते हैं, और हम उनके बच्चे होने के आशीषों का आनंद उठा सकते हैं! एक दिन यीशु वापस आने वाले हैं। वह सभी सच्चे विश्वासियों को स्वर्ग में ले जाएंगे। वहाँ वे हमेशा के लिये अपने पर्मेश्वर के साथ रहेंगे।

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