हमें प्रार्थना करना सिखा

प्रार्थना एक नम्र विनती है। जो यीशु मसीह का नाम में पिता परमेश्वर से करना है। स्वयं को स्वर्गीय प्रेमी पिता के सामने प्रकट करना ही प्रार्थना है। प्रार्थना में हमारी आत्मा शब्दों के द्दारा या हमारे मनों के विचार के द्दारा परमेश्वर से बाते करती है। परमेस्वर चाहता है कि हम उसके साथ बातें करें। हम उसके पास धन्यवाद के साथ या विनती के साथ या फिर निराशा के साथ आ सकते है।

पहली बार प्रार्थना करते समय, कुछ लोग कहते हैं की उन्हें विचित्र लगता है, जैसे वे किसी से बाते नहीं कर रहे हैं। शैतान चाहता है कि हम ऐसे ही विश्वास करे और पुन: प्रार्थना न करें। सत्य यह है जो बाइबल हमें आश्वासित करती है, कि हम कहीं भी या किसी भी समय में हो, परमेश्वर हमारे सच्ची विनती को सुनता है। “और हमें उसके सामने नो हियाव होता है, वह यह है; कि यदि हम उस की इच्छा के अनुसार कुछ मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है” (१ यूहत्रा ५:१४)।

प्रार्थना परमेश्वर से बातें करना है। प्रत्यक्ष रूप में परमेश्वर से एक सरल और सच्ची रीति से बाते करना है, आपके सारे अनुभव और आवश्यकता परमेश्वर को बताना है। यदि आप नहीं समझ पाते कि प्रर्थना करते समय ऐसे अनुभव कयों होता है, इस बिषय में परमेश्वर से कहें। बाइबल बताती है, “इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसे आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिए बिनती करता है” (रोसियो ८:२६)। जब आप हताश और निराश हैं या खुश और कृतज्ञ हैं, स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रकट करें। यह महत्वपूर्ग है कि हम वास्तव में ईमानदार रहें। परमेश्वर सुनना चाहता है कि हम वास्तव में किल की गहराई में कैसे अनुभव करते हैं।

सम्पूर्ण विषय-वस्तु – हमें प्रार्थना करना सिखा

सुनिये कि परमेश्वर आप से क्या कहता है। प्रभाव और विचार देने के द्दारा वह हमसे बाते करता है। यह प्रार्थना के समय आ सकता है। फिर भी जिन शब्दों के साथ हम प्रार्थना करते हैं, यह परमेश्वर द्दारा दिया हुआ प्रभाव का फल हो सकता है। परमेश्वर अपनी इच्छा हमसे जाहिर करता चाहता है। वह परर्थना के समय या प्रार्थना के बाद यह कर सकता है। वह उनके आत्मा के द्दारा, बाइबल के द्दारा और अपने दासों के द्दारा बाते करता है।

जब हम प्रार्थना करते हैं हमारे चारों और ध्यान भंग करने वाली संसारिक चीजें से हमें बचकर रहना चाहिए और परमेश्वर के साथ हमारे सहभागिता में ध्यान देना चाहिए। जबकि हम प्रार्थना कहीं भी, किसी भी स्यिति में कर सकते हैं, यदि सम्भव हो तो हमें शांत स्थान चाहिए। जब हम अपनी अाँखो को बन्द करते है और परमेश्वर के सम्मान में धुटने टेकते हैं नो हम बेहतर मनन कर सकते हैं। हमारा ध्यान परमेश्वर की आेर केन्द्रित होना चाहिए। (मत्ती ६:६)

कुछ लोग कहते हैं, “लेकिन मैं नहीं जानता कि क्या शब्द इस्तेमाल करूं या कैसे मैं स्वयं को परमेश्वर के सामने प्रकट करूं।” यह हो सकता है, हम यह कहते है क्योंकि हम कल्पना करते हैं कि हमें अलग-अलग शब्द इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि परमेश्वर हमारी प्रार्थना सुने। हम सोच सकते हैं कि उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए हमं अधिक शब्द इसतेमाल करना चाहिए और सुन्दर और परिष्कृत रीति से बाते करना चाहिए। वास्तविकता में, बाइबल हमें कई प्रार्थना का उदाहरण देता है जो बहुत ही छोटा और साधारण है, और परमेश्वर ने उसे आदर किया। उदाहरण के लिए, एक पापी मनुष्य ने इस प्रकार प्रार्थना किया, “हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर” (लूका १८:१३)। दूसरे पापी ने, टूटे और पश्चातापी हृदय से प्रार्थना किया, “हे यीशु जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना (लूका २३:४२)। परमेश्वर प्रर्थना के लिए विशेष बोली की अपेक्षा नहीं करते। बाइबल अलाग-अलग पृष्ठभूमि के कई व्यक्तियों की प्रार्थना का संग्रा है और कोई भी दो प्रार्थनांए एक जैसी नहीं है।

हमारी प्रार्थना प्रभावशाली होने के लिए हमें परमेश्र्वर के सम्मुख दीनता के साथ आना चाहिए। हम २ इतिहास ७:१४ में पढते है, “तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो पेरे कहलाते है, दीन होकर प्रार्थना करें और पेरे दर्शन के खोजी होकर अपनी बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप क्षमा करूंगा और उनके देश को ज्यों का त्यों कर दूँगा।”

प्रभु के साथ अचछा परिचित होने के लिए, आवश्यक है कि हम उसकेे निर्देशों के अनुसार प्रतिउत्तर देंविशेष रूप से किसी भी पाप से मन फिराने के विषय में।

जब हम प्रतिदिन परमेश्वर से बाते करते हैं, तो वह हमें दर्शन देता है, हमारे जीवन को स्थिर करता है, और हमारी विनतियों को पूरा करता है। “यदि तुम मुझ में बने रहो और मेरा वचन तुम में बना रहे, तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा” (यूहत्रा १५:७)।

यीशु मसीह के नाम में प्रार्थना करे। उन्हेंने कहा, “जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्दारा पिता महिमा हो” (यूहत्रा १४:१३)।

हमारे पास अपना कोई योग्यता नहीं है; हम सिर्फ यीशु मसीह के द्दारा प्रार्थना में परमेश्वर के पास आ सकते हैं।

बारम्बार प्रार्थना करें, उनके आवाज को सुने जब वह बोलते हैं। उन आन्तरिक प्रेरणाआें का पालन करे जो वह बड़ी अनुग्रह से देता है। “और मैं तुमसे कहता हूँ कि माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढो, तो तुम पाआेगे; खटखटाअो, तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा” (लुका ११:१)।

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आपके लिए उत्तर

क्या आप जानते हैं कि ऐसा कोई है जो आपके विषय में सबकुछ जानता है? परमेश्वर का पुत्र यीशु, सबकुछ जानता है जो आपने किया है। उन्होंने पृथ्वी और जो कुछ इनमें है उसकी सृष्टि की। वह अतित, वर्तमान और भविष्य को जानता है। वह आपसे प्रेम करता है और आपको पाप से बचाने के लिए इस संसार में आया। आपके जीवन में आनन्द लाने के लिए उनका एक योजना है।

एक दिन यीशु अपने मित्रों के साथ यात्रा कर रहे थे। वह सामरिया के एक गांव में आए। यीशु विश्राम करने के लिए एक कूएँ के पास बैठे, जब उनके मित्र भोजन खरीदने के लिए गए।

यब यीशु वहाँ बैठे हुए थे, एक स्त्री कूएँ से जल भरने के लिए आई। यीशु ने उससे पूछा, “क्या तुम मुझे पानी पिला सकती हो?”

सम्पूर्ण विषय-वस्तु – आपके लिए उत्तर

स्त्री आश्चर्यचकित हुई। “तू मुझे पानी माँगता है?” उसने कहा। “क्या तुम नहीं जानते कि मैं एक सामरी हूँ और यहूदी हमारे साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते?”

यीशु ने कोमलतापूर्वक उत्तर दिया, ”वास्तव में यदि तू परमेश्वर और जिससे तू बाते कर रही है उसके विषय में जानती तो तू मुझे जीवन का जल माँगती। मैं प्रसन्नतापूर्वक देता।”

स्त्री आश्चर्यजनक रुप से उसकी ओर देखी। उसने कहा, “हे प्रभु”, कुआँ गहरा है, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं। कैसे तू जीवन का जल निकालेगा?

यीशु ने फिर उत्तर दिया, “जो कोई इस कूएँ से पीएगा वह फिर प्यासा होगा। परन्तु यति तू उस जल में से पीएगी जो मैं देता हूँ, तो तू कभी प्यासी न होगी।”

“हे प्रभु”, स्त्री ने कहा, “वह जल मुझे दे ताकि मैं फिर कभी प्यासी न होऊँ और न ही यहाँ जल भरने के लिए वापस आऊँ।”

“जा अपने पति को बता और वापस आ” यीशु ने कहा।

“मैं बिना पति की हूँ” स्त्री ने उत्तर दिया।

“यह सच है,” यीशु ने कहा। “तू पाँच पति कर चुकी है, परन्तु अब जो तेरे साथ है वह तेरा पति नहीं है।”

यह मनुष्य मेरे विषय में कैसे जानता है, वह आश्चर्यचकित हुई। “हे प्रभु,” मुझे लगता है कि तू एक भविष्यवक्ता है। मेरे पास आपके लिए एक प्रश्न है। मेरे जाति के लोगों ने इसी स्थान पर परमेश्वर की आराधना की। तुम कहते हो कि यरूशलेम आराधना करने का स्थान है।

यीशु ने उससे कहा, “यह महत्वपूर्ण नहीं कि हम कहाँ आराधना करते हैं, आज सच्चे विश्वासी आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना कर सकते हैं।”

“मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रीस्त कहलाता है आने वाला है, उसने कहा, और जब वह आएगा, तो हमें सब बाते बता देगा।”

तब यीशु ने उससे कहा, “मैं ही हूँ।”

वह अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई। “आओ,” उसने रोते हूए कहा, “आओ और एक मनुष्य कै देखो जिसने सबकुछ जो मैंने किया है मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?”

तब नगर के लोग निकल कर यीशु से मिलने गए। बहुतों ने विश्वास किया था कि वही मसीह है, उद्धारकर्त्ता क्योंकि वह उनके विषय में सबकुछ जानता था। आप यह विवरण यूहन्ना रचित सुसमाचार ४:३-४२ में पढ़ सकते हैं।

यीशु हमारे विषय में सबकुछ जानता है, चाहे अच्छा हो या बुरा। हम अपने जीवन में किए हुए बुरे चीजों को छिपाना चाहते हैं, परन्तु हम यीशु से छिपा नहीं सकते। वह हमारे बुरे कर्मों के लिए जिस दण्ड के हम योग्य थे उससे बचाने के लिए आया। वह हमारे बोझ को जो हम अपने हृदय में महसूस करते हैं उसे दूर कर सकता है और हमें शान्ति दे सकता है। वह हमारे पापों को दूर करने के लिए मरा, और यह सम्भव बनाया कि मरने के पश्चात हम स्वर्ग में एक घर पा सके।

यीशु आपके सभी जरूरत और प्रत्येक प्रश्न का उत्तर है। वह आपका मित्र बनना चाहता हे। वह आपके हृदय की शून्यता को भरना चाहता हे। वह आपके भय और अशान्ति को शांति और निश्चिंतता में प्रतिस्थापित कर सकता हैं।

यीशु कहते हैं, “मेरे पास आओ... और मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती ११:२८)। उनसे प्रार्थना करे और उन्हें आपके जीवन में आने के लिए कहें। जैसे ही आप इस महान परमेश्वर को विश्वास से ग्रहण करेंगे, वह आपके हृदय में बना रहेगा। उनका उपस्थिति आपको आनन्द देगा। वह आपके जीवन में शक्ति और उद्देश्य देगा। वह आपके लिए उत्तर होगा।

 

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पर्मेश्वर का उपहार (आपके लिए)

आदि में पर्मेश्वर, उसके पुत्र यीशु मसीह, और पवित्र आत्मा थे। उन्होंने पृथ्वी और जो कुछ इसमें है, उन सब कि सृष्टि की। अपने प्रेम में, पर्मेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया और उसे एक सुंदर वाटिका में रखा। मनुष्य ने परमेश्वर के निर्देशों का पालन नहीं किया। यह अनाज्ञाकारिता पाप था और इस पाप ने मनुष्य को पर्मेश्वर से अलग कर दिया। पर्मेश्वर ने उनसे कहा कि अपने पापों कि क्षमा के लिए उन्हें निर्दोष एवम् निष्कलंक छोटे पशुओं का बलिदान देना होगा। इन बलिदानों ने उनके पाप का मूल्य नहीं चुकाया परंतु केवल उस सर्वश्रेष्ठ बलिदान की तरफ इशारा किया जो पर्मेश्वर स्वयं प्रदान करेंगे। एक दिन परमेश्वर अपने पुत्र यीशु को इस पृथ्वी पर भेजेंगे ताकि सभी लोगों के पापों के लिए वह अंतिम और सर्वश्रेष्ठ बलिदान हों।

मरियम और स्वर्गदूत

सम्पूर्ण विषय-वस्तु – पर्मेश्वर का उपहार (आपके लिए)

चार हज़ार वर्ष पश्चात्, नासरत नाम के एक शहर में, मरियम नामक एक कुंवारी स्त्री रहती थी। उसकी मंगनी यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी। एक दिन एक स्वर्गदूत ने मरियम को दर्शन दिया और उससे कहा कि वह एक विशेष बालक को जन्म देगी। उसका नाम यीशु रखना होगा। इस बच्चे का कोई सांसारिक पिता नहीं होगा। वह पर्मेश्वर का पुत्र होगा।

यीशु का जन्म

स्वर्गदूत से भेंट के पश्चात्, यूसुफ और मरियम ने कर का भुगतान करने के लिए बेथलहम कि ओर एक लंबी यात्रा की। जब वे बेतलेहेम पहुंचे, तो शहर में बड़ी भीड़ थी। सराय में कोई जगह नहीं मिलने के कारण उन्होंने रात एक गौशाले में बिताई। वहां यीशु का जन्म हुआ। मरियम ने बालक यीशु को एक कपड़े में लपेटकर चरनी में रखा।

चरवाहे

उसी रात, शहर के बाहर एक पहाड़ी पर, चरवाहे अपनी भेड़ों कि रखवाली कर रहे थे। प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ, और प्रभु का तेज उनके चालों ओर चमका। स्वर्गदूत ने कहा, "मत डरो। क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनंद का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिये होगा। इस रात एक उद्धारकर्ता जन्मा है। वह प्रभु यीशु मसीह है। तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।" तब एकाएक बहुत से स्वर्गदूतों ने पर्मेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए कहा, "आकाश में परमेश्वर की महिमा, और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है, शांति हो"। जब स्वर्गदूत उनके पास से चले गए, तब चरवाहे अपनी भेड़ों को छोड़ तुरंत बैतलहम को चल दिए। और जैसा स्वर्गदूत ने उनको कहा था उन्होंने बच्चे को ठीक वैसा ही पाया।

ज्योतिषी

यीशु के जन्म के पश्चात्, पूर्व देश से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछ्ने लगे, "यहुदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको प्रणाम करने आए हैं।" जब राजा हेरोदेस ने यह सुना, तो वह प्रसन्न नहीं हुआ। तब उसने लोगों के सब प्रधान याजकों और शास्त्रियों को एक साथ बुलाया। उन्होंने राजा को बताया कि भविष्यवक्ताओं ने कहा था कि एक शासक बैतलहम में पैदा होगा। राजा हेरोदेस ने ज्योतिषियों को इस राजा की खोज के लिए बेतलेहेम भेजा। ज्योतिषी राजा की बात सुनकर यरूशलेम से चले गए, और जो तारा उन्होंने पुर्व में देखा था वह उनके आगे-आगे चला और जहां बालक था, उस जगह के उपर पहुंचकर ठहर गया, उन्होंने उस घर में पहुंचकर बालक यीशु को देखा। उन्होंने मुँह के बल गिरकर बालक को प्रणाम किया, और अपना-अपना थैला खोलकर उसको सोना, और लोबान और गंधरस की भेंट चढ़ाई। पर्मेश्वर ने ज्योतिषियों को एक स्वप्न में चेतावनी दी कि उन्हें दुष्ट राजा हेरोदेस के पास वापस नहीं जाना चाहिए, इसलिए वे दुसरे मार्ग से अपने घर चले गए।

पर्मेश्वर के उपहार का कारण

यीशु परमेश्वर का पुत्र था। वह पाप रहित रहा और अपने सभी कार्यों में सिद्ध था। तीस वर्ष की आयु में, यीशु ने लोगों को पर्मेश्वर, अपने पिता के बारे में सिखाना शुरू किया। उसने कई आश्चर्यकर्म किए जैसे, अंधों को दृष्टि प्रदान कि, कई लोगों को बीमारियों से चंगा किया, और यहां तक कि मरे हुओं को भी जिलाया। इन सब से बढ़कर उसने स्वर्ग में अनन्त जीवन प्राप्त करने का मार्ग बताया। फिर उसने सारे जगत के पापों के बलिदान के लिये अपने प्राणों को दे दिया।

यूहन्ना ३:१६ में बाइबल कहती है, "क्योंकि पर्मेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिय, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट ना हो, परन्तु अनन्त जीवन पाये।" एक सर्वोच्च सर्वश्रेष्ठ बलिदान के रूप में क्रुस पर मरने के लिये यीशु इस संसार में आया। उनकी मृत्यु से, सभी पापों की कीमत चुकाई गई है। अब पाप के लिए बलिदान देने की आवश्यक्ता नहीं है। यह उद्धारकर्ता को भेजने के लिए पर्मेश्वर कि प्रतिग्या की पूर्ति थी।

यद्धपि यीशु दुष्ट मनुष्यों के द्वारा मार डाला गया, परंतु मृत्यु का उस पर कोई बल नहीं था। तीन दिन बाद वह कब्र से विजयी होकर जी उठा। उसके जी उठने के बाद के दिनों तक, यीशु बहुत से लोगों के द्वारा देखा गया। फिर एक दिन, अपने चेलों को आशीष देने के बाद, वह स्वर्ग में चला गया।

जब हम उस पर सम्पूर्ण विश्वास करते हैं और अपने जीवन को यीशु के हाथों में सौंपते हैं, तो उसका लहू हमें सभी पापों से शुद्ध करता है। जब हम उद्धार के इस उपहार को स्वीकार करते हैं, तब हमारा सम्बंध पर्मेश्वर के साथ फिर से जुड़ जाता है। यीशु हमारे व्यक्तिगत प्रभु और उद्धारकर्ता बन जाते हैं, और हम उनके बच्चे होने के आशीषों का आनंद उठा सकते हैं! एक दिन यीशु वापस आने वाले हैं। वह सभी सच्चे विश्वासियों को स्वर्ग में ले जाएंगे। वहाँ वे हमेशा के लिये अपने पर्मेश्वर के साथ रहेंगे।

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